Ashok Sharma

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ठिठुरन में नव वर्ष

समय पुराना बीत गया,
धूँध से सहम रीत गया,
कहीं बाढ़ की आफत आयी,
महामारी ने छीना सब हर्ष,
आया है ठिठुरन में नव वर्ष।

कुंठित मन का आस है झेला,
कंपित है बर्फ रुग्ण मन ढेला,
दिनकर को ढक दी तम चादर,
जन जीवों में छिपा उत्कर्ष,
आया है ठिठुरन में नव वर्ष।

कामगार भी ठिठुर गए हैं,
सबके अरमां भी बिटुर गए हैं,
मानवता पर बड़ी बीमारी,
अब पाँव फुलाये विदेशी फर्श,
आया है ठिठुरन में नव वर्ष।

लटके कुसुम भारी जल कण से,
दुबके बाल शीतों के रण से,
देती है दर्द अब ठलुआ रुई
ठंडक रवि का बड़ा प्रतिकर्ष,
आया है ठिठुरन में नव वर्ष।

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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.

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5 Comments

Sudhanshu pabdey

30-Jan-2022 10:45 AM

Very beautiful 👌

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Swati chourasia

30-Jan-2022 09:54 AM

Very beautiful 👌

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Abhinav ji

29-Jan-2022 10:20 PM

Nice one

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